सुनो!!!! मैं कामधेनू हूँ…।
दूसरी कक्षा में पहली बार लिखा था उसके बारे में..
चार पैर. दो सींग. एक पूछं.
और दूध देने वाला प्राणी..
बस इतना ही जाना था उसके बारे में..।
चंद साल बाद एक बात और पता लगी उसके बारे में..
उसे मां भी कहते हैं..।
मां सबसे पहले ..मां की ही रोटी
बनाती है..।
जब मां से पूछा उसके बारे में..
तो मां ने कहा.. मेरी मां भी बनाती थी इसलिये मैं भी..
चंद साल और गुज़रे
सीमा के मन में सिर्फ एक खयाल था उसके बारे में..
यह भी मां कयो है..
चंद साल बाद..
जब मैं मां बनी…फिर से कुछ याद आया उसके बारे में..
एक जबरदस्त उत्कंठा उसके बारे में..
भैंस.. ऊंटनी.. बकरी.. बिल्ली
शेरनी ..बाघिन.. और हिरणी..
और न जाने कितनी हैं..
पर कभी किसी को मां कह कर नहीं पुकारा..
ऐसा कया है उसके बारे में..
जो बार बार… रह रह कर..मेरे मन मे कुलबुलाता है..कुछ कचोटता है..।
मानों वह कह रही है..
मां हूँ तेरी..
कुछ तो कह मेरे बारे में
कुछ तो कर मेरे बारे में..।
चंद शब्द बटोर कर लाई हूं..
वैसे तो तुम शब्दों की मोहताज नहीं हो..
पर मजबूरीवश कुछ कोशिश कर लाई हूं..
तेरी महिमा..तेरा गुणगान.. तेरा अर्थ ..मेरी कलम से हो..
मैं वो सौभाग्यशाली हाथ और कलम लेकर आई हूँ..।
सभी जानते है..तू दिव्य मां है..
पर मां कयों है..?
बस यही बताने आई हूँ..।
तेरी गाथा लिखते लिखते..
तेरे ही पचंततवों में..तेरे चरणों की मिट्टी में…
मिल जाने को जी चाहता है..
परंतु इससे पहले…
घर घर में तेरा वास कराने आई हूँ..।
उस गोविन्द की आखिरी जिंदा निशानी को..
सुन लो.. जान लो..पहचान लो..
मान लो..।
अभी नही तो फिर कभी नही..
कोई हक नही तुम्हें उस मुरली वाले की पूजा करने का..
कोई हक नहीं तुम्हें उस कृष्ण के लिये भजन कीर्तन गाने का..
तुम जान भी नही सकते मैं ही उसकी शक्ति थी..युक्ति थी..भक्ति थी..
कलम थी ..उसकी गीता की..
उसकी वाणी में..विचारों में..
मेरा ही पंचगवय बोलता था..।
मेरा ही मकखन खा कर वो बासुंरी वाला ..ब्रह्मा हो गया..।मेरा ही दूध पीकर वह छोटा सा कन्हैया…
कंस से लड़ गया..।
मेरी ही चरणों की मिट्टी में लोट कर वह माधव ..
योगीराज बन महाभारत लड़ गया..।
तू भी माधव..गोविंद.. कृष्ण..
बासुंरी वाला हो जा..
बस मुझे घर घर कर जा..।
भारत के रक्त को हिम मत कर..
सफेद मत कर..
इसे गर्म ही रहने दे..
इसे लाल ही रहने दे..।
फिर से भारत में गौ चक्र चला जा..।
मेरे रहते मेरा ही भारत बीमार है
इससे बड़ी त्रासदी क्या होगी ??
इससे बड़ा अचंभा क्या होगा ??
मेरे पंचगव्य के होते – ऐ मानस !!
तेरा पंचतत्व का शरीर बीमार है ??
थोड़ा सा ही सही कुछ तो जान
कम ही सही कुछ तो मान
सुन क्या हूं मै ?
सूर्य की प्रतिनिधि हूं मै ।
ब्रह्मांड के सूर्य,चंद्रमा,और नक्षत्र
की
सभी किरणों को अवशोषित करके
तुझ तक पहुंचाती हूं मै ।
इसी सूर्य की किरणों के कारण मेरा रंग पीला है ।
तभी तो मै स्वर्णा / पीतांबरी
कहलाती हूं ।
सुन और क्या हूं मैं !!!
सबसे पहले तेरी मां हूं मैं…
मेरा दूध बिल्कुल तेरी मां जैसा है
हल्का ,सुपाच्य,मीठा,कोमल, पवित्र।
और अब सोच तू क्या पी रहा है??
मेरा दूध पी कर ही सिद्धार्थ…
महात्मा बुद्ध कहलाया था ।
इसी दूध का माखन खा के
नन्हा “कान्हा”…. श्री कृष्ण
कहलाया करता है।
इसी घृत की धार से
राम….मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाए।
इसी माखन से बची छाच , मठा,और तक्र।
जो भी इसको खाली पेट पीता हो
उसका पेट रहेगा सदा स्वस्थ
और सदा खुले रहेंगे
उसके सातो चक्र ।
अब आगे सुन और क्या हूं मै
इस मां का मूत्र भी
सौ रोगों की एक दवा है।
केवल दस घूंट ही पीकर
उम्र सौ वर्ष की पा सकता है।
हो बुखार या कर्क रोग
कुछ भी मेरे मूत्र के आगे टिक नहीं सकता।
मेरे गोमय में लक्ष्मी का है वास
इसको लगाने से किसी भी तरह
का चर्म रोग नहीं रहेगा ।
गोमाय रस पीने से प्रसूता की
प्रसव पीड़ा ज्यादा लंबी ना होगी
प्रसव पीड़ा में गोमाए रस पीने से
संतान उत्तम और स्वस्थ होगी
मै इस सम्पूर्ण मानव जाति और इस ब्रह्मांड का आस्तित्व हूं
और इस भारत वर्ष का
विश्वगुरु
बनाने में सक्षम हूं
सतयुग को लाने का केवल और केवल में ही माध्यम हूं।
गौमाता ही हमें सतयुग की ओर ले जा सकती है..।पंरपरागत संस्कृति को लाने के लिए…. गौ संस्कृति को वापिस लाना ही होगा….अन्यथा भारत की प्रगति संभव नहीं..।सतयुग को वापिस लाना है..तो..
गौ माता को बचाना होगा..।भारत की महानायिका केवल गौ माता ही हो सकती है.
गौ सेवा ही राष्ट्रीय धर्म है..।
गौ माता ही भारत का अस्तित्व है..।
गव्यासिध डॉ. सीमा”स्वस्ति”
गव्यसिद्ध डॉ अमित दांगी।
गौ सैनिक मोहित मुखिया गुर्जर।
गौ सैनिक विशाल अहलावत।
धन्यवाद।