आखिर घरेलू हिंसा है क्या?
चारदीवारी के भीतर होने वाली हर हिंसा घरेलू हिंसा की श्रेणी में आती है. दो लोगों के बीच जब प्यार, सम्मान और सहानुभूति की भावना समाप्त होकर नफरत और क्रूरता में तब्दील हो जाती है तो वो घरेलू हिंसा बन जाती है.
ये शारीरिक, सेक्सुअल और व्यवहारिक मानसीक चारों ही तरह की हो सकती है. ऐसे में ये जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि घरेलू हिंसा के क्या-क्या कारण हो सकते हैं. आंकड़ों के आधार पर देखें तो घर में पद, पैसे और दूसरे भौतिक सुखों के चलते ही ज्यादातर मामले घरेलू हिंसा का रूप ले लेते हैं. कई बार बदले की भावना भी इसे जन्म देने का काम करती है.
क्षति पहुँचाना या जख्मी करना या पीड़ित व्यक्ति को स्वास्थ्य, जीवन, अंगों या हित को मानसिक या शारीरिक तौर से खतरे में डालना या ऐसा करने की नीयत रखना और इसमें शारीरिक, यौनिक, मौखिक और भावनात्मक और आर्थिक शोषण शामिल है; यादहेज़ या अन्य संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की अवैध मांग को पूरा करने के लिए महिला या उसके रिश्तेदारों को मजबूर करने के लिए यातना देना, नुक्सान पहुँचाना या जोखिम में डालना ; यापीड़ित या उसके निकट सम्बन्धियों पर उपरोक्त वाक्यांश (क) या (ख) में सम्मिलित किसी आचरण के द्वारा दी गयी धमकी का प्रभाव होना; यापीड़ित को शारीरिक या मानसिक तौर पर घायल करना या नुक्सान पहुँचाना”
घरेलू हिंसा एक अपराध है पर बावजूद इसके इससे जुड़े ज्यादातर मामले सामने आ ही नहीं पाते हैं. कई बार घर-परिवार के डर से तो कई बार समाज में इज्जत खोने के डर से लोग इसे जाहिर नहीं होने देते हैं. ऐसे में पीड़ित प्रताड़ित होता रहता है और पीड़ा देने वाला अपनी बर्बरता करता रहता है.
रिलेशनशिप से जुड़े मामलों के विशेषज्ञों की मानें तो बीते कुछ समय में इस तरह के मामलों में काफी तेजी आई है. विशेषज्ञ मानते हैं कि पार्टनर्स के बीच आपसी भरोसे और प्यार के खत्म हो जाने से ही चीजें इस मुकाम पर पहुंच जाती हैं.
बहुत ही सुंदर कविता लिखी है आकांक्षा शर्मा जी ने
“किससे पूछ कर वहां गई थी?”
“मेरे सामान को हाथ लगाने का हक़ किसने दिया तुम्हे?”
“हमेशा मेरा रुमाल रखना क्यों भूल जाती हो?”
“क्यों मुझे परेशां करती रहती हो?”
“क्या तुम मेरा मूड देख कर बात नहीं कर सकतीं?”
“ये बिलकुल बेवक़ूफ़ है।”
“अरे बहुत ख़ुशनसीब हो कि ऐसी बीवी मिली है, ज़रा मेरी वाली को झेल कर देखो।”
“मेरे अलावा तुम्हे कोई नहीं झेलेगा।”
“काश! मैंने कभी शादी ना की होती।”
“इसको यही भाषा समझ आती है।”
“मेरी आज़ादी तो पूरी तरह से कैद हो चुकी है।”
“ये औरत मेरे सर पे बोझ है।”
“अपनी मर्ज़ी से तो मैं कुछ कर ही नहीं सकता।”
“भगवान के लिए रहने दो! तुम्हारे बाप को मै अच्छी तरह जानता हूँ।”
“मेरी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी गलती थी तुमसे शादी करना।”
“थोड़ा और जल्दी उठ जाओगी तो कोई आफत नहीं आ जाएगी।”
“अपनी बेहन से ही कुछ सीख लो।”
“हमेशा बचो में ही लगी रहा करो मेरे लिए तो तुम्हारे पास वक़्त ही नहीं है।”
“हर त्यौहार पे अपने मायके जाना ज़रूरी है क्या?”
“तुम्हे अब मुझमे दिलचस्पी नहीं कहां है ज़रूर कही चक्कर चल रहा होगा।”
“अरे छोड़ो! ये इसके दिमाग़ के ऊपर की बाते हैं।”
“मेरी बेज़्ज़ती ही करवाया करो हर जगह।”
“बड़ी शर्म आती है मुझे तुम पर।”
“कभी तो ढंग की बन के रहा करो।”
“डिग्री लेने से कोई समझदार नहीं बन जाता।”
“मेरा एहसान मानो की मैं तुम्हे इस घर में रहने दे रहा हूँ।”
“दुसरो को ऐसा क्यों जताती हो की जैसे मैं तुम्हे मारता हूँ।”
“सती सावित्री बनने का नाटक बंद करो।”
“मेरे सामने बोलने की तुम्हारी औकात ही क्या है?”
“औरत हमेशा औरत ही रहती है।”
“अच्छा न आई एम सॉरी। अब घमंड दिखाना बंद करो और मुस्कुराओ।”
“मुस्कुराने से होंठ दुखने नहीं लगेंगे तुम्हारे।”और हम सोचते थे की घरेलु हिंसा का अर्थ केवल हाथ उठाना होता है।
आकांक्षा शर्मा
शाशविता शर्मा जी के साथ घरेलू हिंसा के बारे में बातचीत|
शाशविता शर्मा
वास्तव में आज हमारे देश, समाज और परिवार में घरेलू हिंसा की जड़ें इतनी गहराई तक चली गयी है की उन्हें काट पाना काफी मुश्किल होता जा रहा है। जिसके चलते आये दिन हमें ऐसे बहुत से उदाहरण और लोग देखने को मिलते है जो घरेलू हिंसा का या तो समर्थन करते है या खुद उसमे भागीदार होते है। जिसका कारण है लोगों की सोच। अक्सर आपने भी देखा होगा की बहुत से पति ऐसे होते है जो बेवजह अपनी पत्नी से मारपीट करते है या उनके साथ दुर्व्यवहार करते है।
ऐसे लोग महिलाओं की इज़्ज़त नहीं करते और न ही उन्हें सम्मान देते है। बहुत सी महिलाएं घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश ही नहीं करती जिसके कारण दिनों दिन यह बढ़ती ही जाती है। घरेलू हिंसा के मुख्य कारण परिवार और समाज में फ़ैल रही ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार, अपमान और विद्रोह होता है। परिवार में हो रही हिंसा का शिकार केवल महिलाएं ही नहीं बल्कि वृद्ध और बच्चे भी बन जाते है। बस फर्क इतना होता है की महिलाएं शारीरिक परेशानी झेलती है और बच्चे व् वृद्ध मानसिक परेशानी का सामना करते है।
आपके अनुसार घरेलू हिंसा क्या है?
घरेलू हिंसा घर में किसी भी प्रकार का हिंसात्मक व्यवहार या प्रवर्ति क्योंकि यह घर के सदस्यो के बीच होती है ।
तो यह घरेलू हिंसा हैं।
महिला को ताने देना, गाली देना, उसका अपमान करना, उसकी मर्जी के बिना उससे शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश करना, जबरन शादी के लिए बाध्य करना आदि जैसे मामले भी घरेलू हिंसा के दायरे में आते हैं. पत्नी को नौकरी छोडऩे के लिए मजबूर करना, या फिर नौकरी करने से रोकना, दहेज की मांग के लिए मारपीट करना आदि भी इसके तहत आ सकते हैं
घरेलू हिंसा के 4 प्रकार हैं।
1 शारीरिक
2 मानसिक
3 आर्थिक
4 यौनिक
शारीरिक हिंसा :
इस हिंसा के बारे में सभी बहुत भली भांति जानते है। लेकिन जानकारी के लिए बता दें – मारपीट करना, थप्पड़ मारना, ठोकर मारना, दांत काटना, मुक्का मारना, धक्का देना, लात मारना या किसी अन्य तरीके से महिला को शारीरिक चोट पहुंचाना आदि शारीरिक हिंसा के उदाहरण है।
मानसिक हिंसा :
बहुत से लोग महिलाओं को मारते पीटते नहीं लेकिन वे उसे इतनी ज्यादा मानसिक पीड़ा देते है के वे अपने हालातो पर मजबूर हो जाती है। मानसिक हिंसा में गाली गलौच करना, कलंक लगाना, बुराई करना, मजाक उड़ाना, दहेज आदि के लिए अपमानित करना, बच्चा या बेटा न होने पर ताना देना, शिक्षा या नौकरी में अवरोध उत्पन्न करना, बाहर जाने या किसी व्यक्ति से मिलने के लिए रोकना, अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने या नहीं करने पर दबाब डालना, आत्महत्या की धमकी देना आदि सम्मिलित है।
आर्थिक हिंसा :
ये अक्सर वे ही पुरुष करते है जो या तो ठीक से कमा नहीं पाते या उन्हें नौकरी करने में कोई रूचि नहीं होती। ऐसे पुरुष अप्पने जीवनयापन की वस्तुएं भी महिला के वेतन से खरीदते है। घर में खाने, कपडे, दवाई आदि का खर्च नहीं देना या अगर घर में है तो उनका उपयोग नहीं करने देना, घर का किराया नहीं देना, घर से जबरदस्ती महिला को निकाल देना, नौकरी कर रही महिला का वेतन ले लेना, नौकरी नहीं करने देना, बिलो का भुगतान नहीं करना, घर के किसी भी मौद्रिक कार्य में अपना सहयोग नहीं देना, महिला का वेतन छीनकर शराब आदि पीना आर्थिक हिंसा के उदाहरण है।
यौनिक हिंसा :
पुरुष द्वारा घर की महिला के साथ जबरदस्ती यौन संबंध बनाना, बाल यौन अत्याचार, अश्लील साहित्य या किसी अन्य सामग्री को देखने या पढ़ने के लिए मजबूर करना, महिला की मर्यादा को किसी भी प्रकार से हानि पहुंचाना या अन्य यौनिक दुर्व्यवहार करना आदि यौन हिंसा के उदाहरण है।
घरेलू हिंसा के प्रभाव क्या है?
प्रभाव;
साहस न होना।
निर्णय न लेना।
किसी तरह के कार्य में निपुण न होना।
क्या प्रेम विवाह,उभयलिंगी विवाह,ट्रांसजेंडर भी इसका सामना करते है?
घरेलू हिंसा किसी के साथ भी हो सकता है
हिंसा किन्ही दो आदमी के बीच हो सकती है ।
या फिर किसी ओर समुदाय के बीच ।
ये एक प्रवर्ति है घरेलू हिंसा कभी भी हो सकती है ।
प्रेम विवाह , धर्म कही भी हो सकती है ।
इन सबमे पीड़ित की जागरूक होना बहुत जरूरी है कि वो हिंसा का शिकार हुआ हैं।
किसी के मन मे डर बैठाना, गली गलोच करना मार पिटाई करने की जागरूकता होनी चाहिए।
क्या बच्चे भी इसमें शामिल है?क्या शराब,ड्रग्स का सेवन घरेलू हिंसा को बढ़ावा देते है?
हां, शराब का सेवन करने से आपके अंदर की जो हिंसात्मक प्रवर्ति बाहर आ जाती है।
अगर कोई ऐसा कहता है कि मैंने हिंसा नशे की हालत में की है तो यह गलत है।
अगर आप शराब का सेवन करते है तो आपकी प्रवर्ति हिंसात्मक हो जाती है।
क्या घरेलू हिंसा एक सीखा हुआ व्यवहार है?
हां, अगर माता पिता घर मे हिंसा करेंगे , या स्कूल में बच्चें ऐसा करेंगें तो यह एक सीखा हुआ व्यवहार हो जाता हैं।
आज अगर हिंसा 10% हैं तो आने वाले 10 सालो में यह संख्या बढ़ जाएगा।
अगर इसी प्रकार यही चलता रहा तो समाज में महिलाओं की इज़्ज़त नहीं रहेगी ।इसको रोकने के लिए क़दम उठाने चाहिए।
किस प्रकार कोई महिला कानून के तहत सुरक्षा प्राप्त कर सकती है?
1. शिकायत :
कोई भी महिला सुरक्षा अधिकारी की मदद से या सीधे न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है। सम्पर्क के लिए वे फ़ोन कॉल या पत्र की मदद भी ले सकती है। वह चाहे तो पुलिस, स्वयंसेवी संस्था या पड़ोसी की मदद से भी शिकायत दर्ज करा सकती है।
2. न्यायिक आदेश :
शिकायत दर्ज होने के बाद न्यायिक दंडाधिकारी पीड़िता के पक्ष में सुरक्षा अधिकारी को आदेश देता है। इस आदेश के आधार पर पीड़िता को आवश्यकता के अनुसार राहत और सहायता प्रदान की जाती है।
3. सुरक्षा :
सुरक्षा देने के पश्चात् सुरक्षा अधिकारी पीड़िता महिला के पक्ष में मदद और सुरक्षा की पुष्टि करता है। इस कार्य के लिए सुरक्षा अधिकारी सेवा प्रदाता और पुलिस की सेवा ले सकते है।
क्या है घरेलू हिंसा अधिनियम
घरेलू हिंसा अधिनियम का निर्माण 2005 में किया गया और 26 अक्टूबर 2006 से इसे देश में लागू किया गया. इसका मकसद घरेलू रिश्तों में हिंसा झेल रहीं महिलाओं को तत्काल और आपातकालीन राहत पहुंचाना है. यह कानून महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाता है. केवल भारत में ही लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी रूप में इसकी शिकार हैं. यह भारत में पहला ऐसा कानून है जो महिलाओं को अपने घर में रहने का अधिकार देता है. घरेलू हिंसा विरोधी कानून के तहत पत्नी या फिर बिना विवाह किसी पुरुष के साथ रह रही महिला मारपीट, यौन शोषण, आर्थिक शोषण या फिर अपमानजनक भाषा के इस्तेमाल की परिस्थिति में कार्रवाई कर सकती है.
समाज से इस बुराई को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए
समाज की सभी महिलाओं को एकजुट होकर आवाज़ उठानी होगी तभी इस बुराई का अंत संभव है।
इसके खिलाफ ठोस कानून बनाने चाहिए ।
हम सबको मिलकर ही इस बुराई का सामना करके इसको खत्म करना हैं।